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पिता के डर से कभी कैमरे के सामने नहीं आई !!

हिन्दी सिनेमा का सफरनामा
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हैरत हो रही होगी आपको कि क्या कोई अपने पिता से इतना भी डर सकता है कि कभी भी उनके भय के कारण कैमरे के सामने ही ना जाए. हां, यह सच है कि अपने समय की मशहूर गायिका शमशाद बेगम अपने पिता के डर के कारण कभी भी कैमरे के सामने नहीं जाती थीं क्योंकि उनके पिता को कैमरे की दुनिया से नफरत थी. कहा तो यह भी जाता है कि आवाज की मल्लिका शमशाद बेगम अपने आपको खूबसूरत नहीं मानती थीं इसलिए कैमरे से हमेशा बचने की कोशिश करती थीं.

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शमशाद बेगम की गीतों की माला

हिन्दी सिनेमा के चौथे और पांचवें दशक की बात है जब हर तरफ शमशाद बेगम की आवाज का जादू ही चला करता था और वो अपने जमाने की चुलबुली नायिकाओं की आवाज हुआ करती थीं. शमशाद बेगम ने हिंदी-उर्दू फिल्मों में पांच सौ से ज्यादा गाने गाए जिनमें से अधिकांश गाने आज भी याद किए जाते हैं. ‘गाड़ी वाले गाड़ी धीरे हांक रे’ (मदर इंडिया), ‘तेरी महफ़िल में क़िस्मत आज़मा कर’ (मुग़ल-ए-आज़म), ‘कभी आर कभी पार’ (आरपार), ‘दूर कोई गाए’ (बैजू बावरा),’ मेरी नींदों में तुम’ (नया अंदाज़), ‘कजरा मुहब्बत वाला’ (क़िस्मत) ‘लेके पहला पहला प्यार’, ‘कहीं पे निगाहें कहीं पे निशाना’ (सी.आई.डी.) यह सब गीत उस समय की बॉक्स ऑफिस पर सुपरहिट फिल्मों के गीत हैं जिनको आवाज शमशाद बेगम ने दी थी.


14 अप्रैल, 1919 को अमृतसर में जन्म लेने वाली सुरों की मल्लिका शमशाद बेगम ने अपनी गायिकी के शुरुआती दिनों में ही ओ.पी. नैय्यर का दिल जीत लिया था. शमशाद ने पहला गाना 16 दिसंबर, 1947 को पेशावर रेडियो के लिए गाया था फिर उनकी आवाज को सुनने के बाद ओ.पी. नैय्यर ने उन्हें फिल्म में गाने का मौका दिया. शमशाद बेगम की पहली हिंदी फिल्म ‘खजांची’ थी और इस फिल्म के सारे 9 गाने इन्होंने ही गाए थे जिसके बाद कुछ लोगों ने यह कहना भी शुरू कर दिया था कि पहली फिल्म में ही 9 गाने गाए जरूर इनकी गायिकी में कुछ खास बात हैं. साल 1968 में आई फिल्म ‘किस्मत’ में शमशाद बेगम ने अभिनेत्री बबीता नहीं बल्कि हीरो विश्वजीत के लिए आवाज दी थी. फिल्म में विश्वजीत पर फिल्माए कुछ गानों में वो लड़की के भेष में थे जिसके लिए शमशाद की आवाज इस्तेमाल की गई थी. ऐसा नहीं था कि शमशाद ने सिर्फ फिल्मों के लिए गीत गाए थे उन्होंने म्यूजिक कंपनियों के लिए भक्ति गीत भी गाए थे. मशहूर गायिकी के लिए साल 2009 में शमशाद बेगम को प्रेस्टिजियस ओ.पी. नैयर अवार्ड से भी नवाजा गया था.


शमशाद बेगम ने ‘देवदास’ फिल्म को 14 बार देखा था क्योंकि वो बचपन से ही के.एल. सहगल की बहुत बड़ी फैन थीं. किसने सोचा था कि के.एल. सहगल की फैन शमशाद की आवाज को एक दिन ओ.पी. नैयर मंदिर में बजने वाली घंटियों की आवाज कहेंगे. यह बात जानकर आपको हैरानी होगी कि एक बार साल 1998 में शमशाद बेगम की मौत की अफवाहें भी उड़ाई गई थीं. फिल्म रॉकस्टार का गाना ‘कतिया करूं’ आपने काफी बार सुना होगा पर यह गाना शमशाद बेगम अपनी पंजाबी फिल्म ‘पिंड डि कुरही’ में बहुत पहले ही गा चुकी थीं. किसने सोचा था कि साल 2013, 23 अप्रैल को हिन्दी सिनेमा अपना सबसे ज्यादा चमकने वाला सितारा खो देगा पर शमशाद के गीतों को आज भी याद किया जाता है जब उनके गाए गीतों का रीमिक्स बनता है और युवा उन गीतों पर थिकरते हुए नजर आते हैं.

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