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‘प्यासा’ की प्यास आज भी कायम है !!

हिन्दी सिनेमा का सफरनामा
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‘प्यासा’ कहानी की प्यास आज भी कायम है. जिन लोगों ने ‘प्यासा’ फिल्म को देखा है वो आज भी इंतजार कर रहे हैं ऐसी कहानी को फिर से पर्दे पर देखने के लिए. लेखन कला, संगीत में पिरोई हुई प्रेम लीलाएं, हर एक दृश्य का भाव के साथ प्रस्तुतीकरण शायद ही किसी और फिल्म में यह नजारा देखने को मिले. हिंदी सिनेमा के मशहूर फिल्मकार गुरु दत्त की फिल्म ‘प्यासा’ साल 1957 में आई थी जिसे मशहूर टाइम्स मैगज़ीन ने पांच ऑलटाइम रोमांटिक फिल्मों की लिस्ट में शामिल किया था. मशहूर लेखक नसरीन मुन्नी कबीर ने भी एक किताब लिखी जिसमें उन्होंने गुरुदत्त की सदाबहार फिल्म ‘प्यासा’ के निर्माण से जुड़ी हुई खास बातें लिखी थीं. ‘डायलाग ऑफ प्यासा’ नाम की इस पुस्तक में गुरुदत्त और उनके निर्देशन से जुड़ी तमाम बातों का विवरण है.

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माला सिन्हा, गुरुदत्त और वहीदा रहमान के अभिनय से सजी ‘प्यासा’ फिल्म को हिन्दी सिनेमा में इतिहास रचने वाली ऐसी फिल्म माना जाता है जिसकी तुलना आने वाले सालों में किसी भी निर्देशक की फिल्म नहीं कर सकती है. गुरुदत्त की पत्नी गीता दत्त फिल्म प्यासा में तमाम तरह के बदलाव करना चाहती थीं पर अंत तक गुरुदत्त ने फिल्म की कहानी में किसी भी तरह के बदलाव पर सहमति नहीं भरी और अंत में फिल्म प्यासा वैसी ही बनी जैसा गुरुदत्त चाहते थे. गुरुदत्त को सुझाव देने वाले लोगों का कहना था कि फिल्म प्यासा की कहानी में नायक समाज की सच्चाई को स्वीकार कर जिंदगी से समझौता कर ले तब गीता दत्त ने कहा कि नायक का समझौता करना फिल्म की पूरी कहानी के लिए नुकसानदायक होगा. गुरूदत्त ने अपनी पत्नी गीता दत्त की बात सुनी और नायक के समझौता ना करने की बात मान ली. फिल्म सुपरहिट होने के बाद इस बात का पता चला कि गीता बिल्कुल सही थीं. उस समय के मशहूर फिल्म समीक्षक अनिरुद्ध का कहना था कि फिल्म प्यासा के बॉक्स ऑफिस पर काफी कमाई करने के बाद ही गुरुदत्त और उनके स्टूडियो की आर्थिक समस्या का हल निकल पाया था. तो आप यह भी कह सकते हैं कि फिल्म प्यासा के कारण ही गुरुदत्त फिर से अपने अस्तित्व को कायम कर पाए थे. प्यासा का गीत ‘आज सजन मोहे अंग लगा लो’ बंगाली कीर्तन का ऐसा उदाहरण है जिसे बहुत ही खूबसूरती के साथ हिन्दी संस्करण के तौर पर पेश किया गया था.

अब आपको ले चलते हैं 1957 के उस साल में जब प्यासा फिल्म पर्दे पर रिलीज हुई थी तो ध्यान से सुनिए इस कहानी को जैसे ही पर्दा उठता है पर्दे पर नजर आती है एक प्रतिभाशाली शायर विजय नाम के लड़के की कहानी जिस किरदार को गुरुदत्त निभा रहे थे. विजय शायर को जमाने ने मुर्दा समझकर ठुकरा दिया था फिर वही जमाना उसे सर आँखों पर बैठाने को तत्पर हो जाता है. विजय के परिवार के लोग भी यही चाहते थे कि वो दुनिया की नजरों में हमेशा के लिए मरा रहे क्योंकि वो उसकी रचनाओं को बेचकर व्यवसायिक लाभ कमाना चाहते थे. किताब छापने वाला घोष बाबू नाम का व्यक्ति हमेशा विजय के भाइयों की मदद करता था उनको व्यवसायिक लाभ पहुंचाने में.

अब आप खुद ही सोचिए उन लोगों के बारे में जो उस समय प्यासा फिल्म को पर्दे पर देख रहे होंगे. एक लेखक की दर्दभरी कहानी सुनकर लोग पूरी तरह भावनात्मक स्तर पर इस कहानी से जुड़ गए थे. घोष बाबू नाम का किरदार हमेशा विजय के भाइयों को व्यवसायिक लाभ पहुंचाने में इसलिए मदद करता था क्योंकि निजी तौर पर एक काँटा उसके रास्ते से हट गया था. लेखक विजय घोष बाबू की पत्नी का पूर्व प्रेमी था. इस पूरे क्लाइमेक्स को गुरुदत्त ने जिस तरह से रचा है, उसे आज के समय का कोई भी निर्देशक नहीं रच सकता है. कहा जा रहा है कि कुछ समय बाद फिल्म प्यासा की रीमेक बनेगी जिसमें आमिर खान, गुरुदत्त का किरदार निभाएंगे और कैटरीना कैफ, वहीदा रहमान का किरदार निभाएंगी. वास्तव में सच यह है कि गुरुदत्त की ‘प्यासा’ फिल्म की रीमेक नहीं बननी चाहिए क्योंकि गुरुदत्त की तरह क्लाइमेक्स के साथ इस कहानी को रच पाना नामुमकिन है और फिर जरूरी तो नहीं है कि इतिहास फिर से अपने आप को दोहराए. हो सकता है कि दर्शक प्यासा फिल्म की रीमेक देखने के बाद यही कहें कि ‘आज भी वो प्यास कायम है जो साल 1957 में पर्दे पर देखी थी’.


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