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बस शक्ल पर ही मरते हैं दर्शक

हिन्दी सिनेमा का सफरनामा
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इरफान खान, यह तो अलग टाइप की फिल्मों के सितारे हैं, कमर्शियल फिल्मों में इनकी एक्टिंग कुछ खास नहीं जंचती. व्यवसायिक फिल्मों के लिए यह एक बेहतर चयन नहीं हैं. कुछ ऐसी ही धारणा रखते हैं हम अभिनेता इरफान खान के बारे में. भले ही वैश्विक स्तर पर इरफान खान का नाम एक सितारे की तरह चमकता हो लेकिन इस बात में कोई दो राय नहीं है कि सशक्त अभिनय की पहचान बन चुके इरफान खान को बॉलिवुड मसाला फिल्मों के लिए बिल्कुल भी फिट नहीं समझा जाता.


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इरफान खान बॉलिवुड में काम तो करते हैं लेकिन उनकी उपस्थिति बहुत ही कम नजर आती है. जब इरफान खान से पूछा गया कि अखिर ऐसा क्यों तो उनका साफ कहना था कि हिन्दी फिल्म इंडस्ट्री को समझ में ही नहीं आया कि उनका क्या किया जाए. उन्हें हर बार विलेन बनने के ही ऑफर दिए गए लेकिन उन्होंने इससे इंकार कर दिया. अब आगे का रास्ता ना तो बॉलिवुड जानता है और ना ही वो खुद.


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इरफान खान, अभिनय के क्षेत्र के माने हुए खिलाड़ी हैं. इतना ही नहीं वह अन्य सितारों की तरह बस दर्शकों का मनोरंजन करने में भी विश्वास नहीं रखते. उनके लिए अभिनय और मनोरंजन दोनों का कुछ मतलब है और वह बेवजह के और थोथे मनोरंजन के पचड़े में नहीं पड़ना चाहते.


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आज निर्माता और निर्देशक बस इसी उम्मीद से फिल्म बनाते हैं कि किसी तरह उनकी फिल्म उम्दा कारोबार कर सौ करोड़ के क्लब में शामिल हो जाए. यहां तक कि कलाकार भी अपनी एक्टिंग को नहीं प्रमोशन और अपनी पब्लिसिटी को ही महत्व देते हैं जबकि इरफान खान का कहना है कि सौ करोड़ का टैग बेहूदा है और इसका अभिनय से सीधा कोई वास्ता नहीं है और इस टैग से फिल्म इंडस्ट्री का कोई भला नहीं होने वाला. फिल्म चाहे कोई भी हो लेकिन एक कलाकार के लिए वह बहुत महत्व रखती है, किसी की अदाकारी को पैसे से आंकना सही नहीं है.


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इरफान खान जिन फिल्मों में काम करते हैं उनका कॉंसेप्ट बहुत अलग होता है, वह फिल्में आम दर्शक की पसंद नहीं बन पातीं. उनके विषय में कहा जाता है कि वह बस बुद्धिजीवियों की पसंद हैं. हालांकि यह उनके लिए एक कॉम्प्लीमेंट ही है लेकिन इरफान इसे अपनी नाकामी बताते हैं. उनका कहना है कि कोई व्यक्ति कलाकार इसीलिए बनता है ताकि वह दर्शकों की पसंद बन पाए, उनका मनोरंजन कर पाए, लेकिन मेरी पसंदगी सिर्फ एक वर्ग तक सीमित रह गई है इसीलिए मैं खुद को इस मामले में असफल मानता हूं.


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दर्शक जिस कलाकार की फिल्म उसकी शक्ल या आउटलुक देखकर देखने नहीं आते बल्कि उन्हें उस कलाकार के साथ जुड़ाव महसूस होता है इसीलिए वह फिल्म देखने आते हों वास्तव में वही एक सफल कलाकार माना जाएगा. अन्य तो बस शो पीस की तरह हैं जो आज पसंद आते हैं और कल कुछ बेहतर दिख जाने के बाद उन्हें नजरअंदाज कर दिया जाता है.



कुछ घटनाओं का उदाहरण देते हुए इरफान कहते हैं कि “नेमसेक फिल्म के बाद जब मीरा नायर ने प्रदर्शनी लगाई थी वहां एक महिला मेरी तस्वीर के आगे खड़े होकर रोने लगी थी और जब स्लमडॉग मिलियनेयर रिलीज होने के बाद एक भारतीय ने उनसे हाथ मिलाकर कहा कि 30 साल हो गए अमरीका में रहते हुए, कभी भी इतनी अच्छी फीलिंग नहीं आई जितनी इस फिल्म को देखने के बाद आई है.



इरफान कहते हैं यही मेरी उपलब्धियां हैं, लेकिन बस एक ही बात खलती है कि बॉलिवुड में कमर्शियल और ऑफबीट फिल्मों को एक ही तराजू में नहीं तौला जाता. किसी की प्रतिभा के साथ यह बहुत बड़ा अन्याय है.




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जिंदगी का साथ निभाता चला गया….




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