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नुमाइश देखने दूर-दूर से लोग आते थे

हिन्दी सिनेमा का सफरनामा
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नुमाइश देखने का शौक हर किसी को होता है, पर आज लोगों में वो शौक नहीं है कि वो मीलों दूर का सफर तय कर नुमाइश देखने जाए. समय बदल जाता है और लोगों के शौक भी समय के सा-साथ बदल जाते है.फर्स्ट डे, फर्स्ट शो देखना सभी को बहुत पसंद होता है. प्राय: देखा जाता है कि जब भी कोई अच्छी फिल्म प्रदर्शित होने वाली होती है उसकी एडवांस बुकिंग तक फुल हो जाती है. दोस्तों के साथ लेट नाइट शो देखना भी युवाओं को बहुत सुहाता है. परंतु यह बात भी नजरअंदाज नहीं की जा सकती कि मल्टिप्लेक्स, इंटरनेट के सामान्य जीवन में लोकप्रिय होने के बाद फिल्म देखने के प्रति दर्शकों का जोश और दीवानगी न्यूनतम रह गई है. निर्माताओं को भी जब अपनी फिल्म की पब्लिसिटी करनी होती है तो उन्हें मजबूरन कोई ना कोई हथकंडा अपनाना पड़ता है.

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लेकिन क्या आप जानते हैं कि बॉलिवुड का एक दौर ऐसा भी था जो मल्टिप्लेक्स और आधुनिक तकनीकों से बहुत दूर था. फिल्मों का स्वर्णिम काल समझा जाने वाला वह समय सिंगल स्क्रीन थियेटर का युग था. बॉलिवुड कलाकारों को दिल्ली बहुत सुहाता था. उस काल के कई प्रतिष्ठित कलाकार जैसे राज कपूर, पृथ्वी राज कपूर दिल्ली की शान समझे जाने वाले थियेटर पर विशेष कार्यक्रमों का संचालन करते थे.

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जिन थियेटरों पर आज सन्नाटा पसरा है, कभी वह आधी रात को भी गुलजार हुआ करते थे. रात के अंतिम पहर तक यहां दर्शकों के लिए विशेष शो चलाए जाते थे. उस समय नुमाइश बड़ी प्रचलित थी. दूर-दराज के गांवों और शहरों से लोग नुमाइश देखने दिल्ली आया करते थे. नुमाइश मुश्किल से देर रात तक चलती थी. आधी रात होते ही नुमाइश बंद हो जाती थी और दर्शक सुबह की ट्रेन या बस का इंतजार करते थे. उल्लेखनीय है कि रात के समय यातायात के साधन ना के बराबर होते थे इसीलिए वह सुबह ही प्रस्थान कर पाते थे.


नुमाइश देखने आए लोग पहले तो बस अड्डे पर ही रात बिताते थे जिसके कारण यहां भीड़ बढ़ने लगी. लेकिन फिर शुरू हो गया आधी रात का सिनेमा. थियेटर मालिकों ने रात भर फिल्म चलाने की अनुमति ले ली और सुबह के चार बजे तक वह दर्शकों के लिए फिल्म का मनोरंजन करते रहते थे.

नब्बे के दशक तक चली नुमाइश के दौरान ऐसे लेट नाइट शो खूब चले जिनमें भीड़ भी बहुत ज्यादा जुटती थी. रूबी होटल और नॉवल्टी सिनेमा के मालिक दयाशंकर दीक्षित का कहना है कि नुमाइश देखने वालों के लिए रात को घर लौटना संभव नहीं था. इसीलिए वह रात को फिल्म देखते और चार बजे के बाद गांव चले जाते थे. सुबह सुबह घर पहुंच जाने के कारण उनके काम भी नहीं रुकते थे.

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