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जिंदगी का साथ निभाता चला गया….

हिन्दी सिनेमा का सफरनामा
हिन्दी सिनेमा का सफरनामा
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Dev Anand Profile in Hindi

बॉलिवुड का सुहाना सफर एक ऐसी कहानी बयां करता है जिसने ब्लैक एंड व्हाइट से लेकर थ्री डी तक का सफर तय किया. इस सफर को तय करने में कई पड़ाव आए. कई ऐसे मुकाम आए जिनका जिक्र किए बिना हिन्दी सिनेमा के बारे में सही आंकलन नहीं कर सकते. लेकिन हिन्दी सिनेमा के बदलते दौर को जिस एक शख्स ने अपनी आंखों से देखा वह थे देवानंद.

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Golden Era of  Bollywood and Dev Anand

देवानंद साहबको हिन्दी सिनेमा का ध्रुव तारा कहना गलत नहीं होगा. वह एक ऐसा काल चक्र थे जिन्होंने ब्लैक एंड व्हाइट सिनेमा के गोल्डन पीरियड से लेकर रंगीन फिल्मों की चकाचौंध तक हिन्दी सिनेमा जगत का साथ निभाया था. उन्होंने अपने गीत मैं जिंदगी का साथ निभाता चला गया के दर्शन को सचमुच अपने जीवन में उतारा.


Dev Anand Profile in HindiEvergreen Dev Anand

आज देवानंद साहब तो हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनकी यादें आज भी हर भारतीय के दिलों में कैद हैं. उनकी अदाकारी को भुला पाना नामुमकिन सा है. कई बार लोग उनके अधिक उम्र होने के बाद भी लीड हीरो का किरदार करने पर सवाल खड़ा करते हैं लेकिन वह शायद इस बात को भूल जाते हैं कि देवानंदसाहब के नाम के आगे “सदाबहार अभिनेता” का टैग लगा था जिसे उन्होंने जीवनपर्यंत सार्थक किया. 88 साल की उम्र में भी चाहे उन्हें दूसरे निर्माताओं ने अपनी फिल्म में लेने से इंकार कर दिया हो लेकिन उन्होंने अपनी कंपनी नवकेतन में खुद के पैसे लगाकर फिल्म बनाई और उसमें लीड रोल भी निभाया.


आज देवानंद साहब की जयंती है तो चलिए उनकी जिंदगी से जुड़ी कुछ बातें याद करें और जानें कैसे थे हिन्दी सिनेमा के गोल्डन पीरियड के यह गोल्डन अभिनेता.


Dev Anand and Guru DuttDev Anand’s Biography in Hindi: देवानंद का जीवन

देवानंद का जन्म पंजाब के गुरदासपुर ज़िले में 26 सितंबर, 1923 को हुआ था. उनका बचपन का नाम देवदत्त पिशोरीमल आनंद था. बचपन से ही उनका झुकाव अपने पिता के पेशे वकालत की ओर न होकर अभिनय की ओर था. उन्होंने अंग्रेजी साहित्य में अपनी स्नातक की शिक्षा 1942 में लाहौर के मशहूर गवर्नमेंट कॉलेज से पूरी की.

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देवानंद की पहली नौकरी

देवानंद को अपनी पहली नौकरी मिलिट्री सेन्सर ऑफिस में एक लिपिक के तौर पर मिली जहां उन्हें सैनिकों द्वारा लिखी चिट्ठियों को उनके परिवार के लोगों को पढ़ कर सुनाना पड़ता था. लगभग एक वर्ष तक मिलिट्री सेन्सर में नौकरी करने के बाद वह अपने बड़े भाई चेतन आनंद के पास मुंबई आ गए. चेतन आनंद उस समय भारतीय जन नाटय संघ इप्टा से जुड़े हुए थे.


संघर्ष से सुहाने सफर तक

सबसे पहले उन्हें “हम एक हैं(1946)” में एक अभिनेता के रूप में काम करने का प्रस्ताव मिला. पुणे में इस फिल्म की शूटिंग के दौरान देव आनंद की मुलाकात गुरु दत्त से हुई और वहीं दोनों की मित्रता हो गई. दोनों की दोस्ती की मिसाल हिन्दी सिनेमा जगत में पक्के दोस्तों के तौर पर दी जाती है. दोनों ने संघर्ष के दिनों में एक दूसरे का साथ निभाया. दोनों ने यह भी वादा किया कि जब कभी इन्हें कोई बड़ा मुकाम मिलेगा तो यह दूसरे को जरूर याद करेंगे और मदद करेंगे.


Dev Anand and Guru Dutt: देवानंद और गुरुदत्त

देव आनंद ने 1949 में खुद की निर्माण कम्पनी “नवकेतन” की शुरुआत की. पूर्व के वादे के मुताबिक उन्होंने अपने बैनर की पहली फिल्म बाजी (1951) के निर्देशन के लिए गुरु दत्त से कहा. इस फिल्म ने देव आनंद को रातों रात स्टार बना दिया, और वह जीवन के अंतिम सांस तक, छह दशकों बाद भी स्टार बने रहे.


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देवानंद और हिन्दी सिनेमा

देवानंद उस दौर के अभिनेता रहे हैं, जब फिल्में समाज शिक्षण का माध्यम मानी जाती थीं. विशुद्ध मनोरंजन के नाम पर फूहड़ता, सांस्कृतिक पतन का निराला प्रदर्शन और नैतिकता, मर्यादा को ताक पर रखना स्वीकार्य नहीं था, न फिल्मकारों, अभिनेताओं को, न दर्शकों को. जनता जो देखना चाहती है, वही हम दिखाते हैं, ऐसे तर्को की आड़ में रचनात्मकता के साथ खिलवाड़ करने वाले इस सत्य को देखना नहीं चाहते कि आज भी समाज उत्कृष्टता की सराहना करता है. इसका प्रमाण है देवानंद की फिल्मों के प्रति जनता का प्यार. गाइड, हमदोनों,ज्वेलथीफ ऐसी कई फिल्में हैं, जिन्हें आज की युवा पीढ़ी भी उतने ही चाव से देखती है, जितनी पुरानी पीढ़ी.


04dev03Dev Anand’s Love Affairs: देवानंद और उनके प्रेम कहानियां

बॉलिवुड में देवानंद ना सिर्फ अपनी फिल्मों के लिए बल्कि अपनी अधूरी प्रेम कहानियों के लिए भी चर्चित रहे. सुरैया के साथ उनकी अधूरी प्रेम कहानी गुजरे जमाने के लोगों के जुबान पर रही लेकिन देव साहब जिस तरह अपने पांच दशक के फिल्मी जीवन के दौरान कई हीरोइनों के नायक बने उसी तरह कई महिलाएं उनके दिलों की रानी बनीं. कभी सुरैया तो कभी जीनत अमान यहां तक कि उनकी शादी-शुदा जिंदगी भी कुछ खास अच्छी नहीं रही.

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देवानंद किसी पुरस्कार के मोहताज नहीं थे. अदाकारी वह अपने जुनून को पूरा करने के लिए करते थे. हालांकि उनकी अदाकारी को ना सिर्फ दर्शकों बल्कि समीक्षकों ने भी हमेशा सराहा और उसी का नतीजा थे उन्हें मिले दो फिल्मफेयर अवार्ड. पहला फिल्म फेयर पुरस्कार वर्ष 1950 में प्रदर्शित फिल्म काला पानी के लिए दिया गया. इसके बाद वर्ष 1965 में भी देव आनंद फिल्म गाइड के लिए सर्वश्रेष्ठ अभिनेता के फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित किए गए. वर्ष 2001 में देव आनंद को भारत सरकार की ओर से पद्मभूषण सम्मान प्राप्त हुआ. वर्ष 2002 में उनके द्वारा हिन्दी सिनेमा में महत्वपूर्ण योगदान को देखते हुए उन्हें दादा साहब फाल्के पुरस्कार से सम्मानित किया गया.


हर दिल अजीज देव आनंद का 04 दिसंबर 2011 को लंदन में निधन हो गया. यूं तो देवानंद साहब आज हमारे बीच नहीं हैं लेकिन उनकी यादें हमेशा हमें याद दिलाती रहेंगी और जिन्दगी को जीने की उनकी चाह हमारे लिए प्रेरणा का काम करेगी.


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