- 150 Posts
- 69 Comments
भारतीय सिनेमा कुछ ही दिनों में शतायु होने जा रहा है. वर्ष 1913 से शुरू हुआ यह सफर एक शताब्दी के बाद आज उस मुकाम पर जा पहुंचा है जहां इसे चुनौती दे पाना किसी के लिए भी संभव नहीं है. भारतीय फिल्मों में मौजूद ग्लैमर हो या संजीदगी, अभिनय हो या नव तकनीकें यहां तक कि पटकथा और संवादों का भी वैश्विक स्तर पर कोई सानी नहीं है. लेकिन भारतीय सिनेमा का यह सफर इतना भी आसान नहीं रहा. इन सौ सालों में भारतीय फिल्म उद्योग को ना जाने कितने उतार-चढ़ावों का सामना करना पड़ा, कितनी ही प्रेम कहानियां बनीं और दुखद अंत के साथ समाप्त हुईं. निःसंदेह इस इण्डस्ट्री ने हजारों लोगों को अपनी पहचान स्थापित करने का सुनहरा अवसर दिया लेकिन ऐसे भी बहुत से लोग हैं जो इसकी अंधेरी गलियों में कहां खो गए किसी को पता तक नहीं चला.
उम्र के सौवें वर्ष में प्रवेश कर रहे भारतीय सिनेमा की पहली फुल लेंथ फिल्म राजा हरिश्चंद्र, तीन मई, 1913 को प्रदर्शित हुई थी. इस फीचर फिल्म का निर्माण और निर्देशन धुंदिराज फाल्के उर्फ दादा साहेब फाल्के ने किया था. इस फिल्म की सबसे बड़ी विशेषता इस फिल्म का पूरी तरह स्वदेश निर्मित होना था. फिल्म बनाने के लिए दादा साहेब फाल्के ने कोई भी विदेशी सहायता नहीं ली थी.
फिल्म राजा हरिश्चंद्र
पौराणिक कथाओं में हम अकसर सत्य के मार्ग पर चलने वाले राजा हरिश्चंद्र के विषय में सुनते आए हैं. भारत की पहली फीचर फिल्म भी इस पात्र पर आधारित एक मूक फिल्म थी. इस फिल्म का निर्देशन गिरगांव (मुंबई) स्थित कोरोनेशन सिनेमा में किया गया था.
इस फिल्म को देखने के लिए लोग इतने ज्यादा उत्साहित थे कि इसके पहले शो के दौरान जुटी भीड़ सिनेमा हॉल से निकलकर सड़क तक जा पहुंची. फिल्म अत्यंत सफल रही. दादा साहेब फाल्के को ग्रामीण इलाकों में यह फिल्म दिखाने के लिए अतिरिक्त प्रिंट बनवाने पड़े. इस फिल्म की रील 37 सौ फीट लंबी थी जो करीब 40 मिनट की थी.
इस फिल्म में दत्तात्रेय दामोदर ने राजा हरिश्चंद्र का किरदार निभाया था. तीन अन्य फिल्मों में काम करने के बाद वह निर्देशक एवं सिनेमेटोग्राफर बन गए थे. वर्ष 1924 में उन्होंने राजा हरिश्चंद्र का रीमेक भी बनाया.
राजा हरिश्चंद्र से अपना फिल्मी कॅरियर शुरू करने वाले दादा साहेब (1870-1944) ने मोहिनी भस्मासुर (1913), सत्यवान सावित्री (1914), लंका दहन (1917) और कालिया मर्दन (1919) जैसी फिल्में भी बनाईं. दादा साहेब फाल्के को सम्मान देने के लिए सरकार ने 1969 से दादा साहेब फाल्के पुरस्कार देना शुरू किया. यह सिने जगत का सबसे बड़ा पुरस्कार है.
दादा साहेब महान चित्रकार राजा रवि वर्मा (1848-1906) से बेहद प्रभावित थे, वर्मा भी रामायण और महाभारत जैसी पौराणिक कथाओं के दृश्यों की चित्रकारी करते थे. वह दौर ऐसा था जब फिल्मों में काम करना सामाजिक दृष्टिकोण से बुरा माना जाता था. इसीलिए राजा हरिश्चंद्र फिल्म के सभी किरदार पुरुष थे. यहां तक कि महिला के किरदार भी पुरुषों ने ही निभाए थे.
Read Comments